श्री राम के प्रश्नो मे छुपे जीवन के उत्तर
योग वसिष्ठ
योग वसिष्ठ एक महान दार्शनिक, आध्यात्मिक व वैदिक ग्रंथ है, जिसमें आत्मज्ञान, मुक्ति, वैराग्य, ध्यान और ब्रह्मविद्या के गूढ़ सिद्धांतों को समझाया गया है। यह ग्रंथ न केवल योगियों, संतों बल्कि जिज्ञासु विद्यार्थियों के लिए भी गहन आध्यात्मिक दिशा प्रदान करता है।
योग वसिष्ठ की रचना का काल पूरी तरह निश्चित नहीं है, परंतु विद्वानों का अनुमान है कि यह ग्रंथ लगभग छठी से चौदहवीं शताब्दी के बीच संस्कृत में रचा गया। इस ग्रंथ को महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित माना जाता है। इसमें संवाद भगवान श्रीराम और उनके गुरु महर्षि वसिष्ठ के बीच हुआ है। यह संवाद श्रीराम के आत्मबोध व जीवन की दिशा बदलने हेतु हुआ था।
अवधारणा
- जीवन और मृत्यु का रहस्य
- आत्मा और ब्रह्म की एकता
- मन की शक्ति और मोक्ष का मार्ग
- माया और यथार्थ का विवेचन
- विवेक, वैराग्य और आत्मबोध के अनुभव
इसमें यह प्रतिपादित किया गया है कि "मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः" अर्थात् मन ही बंधन और मुक्ति का कारण है। मन ही बंधन, मन ही मुक्ति – योग वसिष्ठ से जाने आत्मज्ञान की शक्ति!
संरचना
योग वसिष्ठ में कुल छह प्रमुख खंड होते हैं, जिनमें लगभग उनतीस हजार श्लोक हैं:
- वैराग्य खंड – वैराग्य और जीवन की क्षणभंगुरता
- मुमुक्षु खंड – मुक्ति की इच्छा और उद्देश्य
- उपासना खंड – ध्यान, साधना और आंतरिक तप
- ज्ञान खंड – आत्मज्ञान और ब्रह्मज्ञान
- निर्माण खंड – मुक्ति के पूर्व स्थितियाँ
- निर्वाण खंड – पूर्ण आत्म-स्थिरता व ब्रह्मनिष्ठा
प्रत्येक खंड में छोटे-छोटे सर्ग होते हैं, जिनमें कथा रूप में तत्वज्ञान समझाया गया है।
विशेषताएँ
- यह ग्रंथ अद्वैत वेदांत और योग दोनों का संगम है।
- इसमें अनेक उपमाएँ, दृष्टांत और कथाओं के माध्यम से ज्ञान दिया गया है।
- यह ध्यान, आत्मनिष्ठा, और कर्मों के रहस्य को गहराई से प्रकट करता है।
"चित्तं एव हि संसारः तेन ज्ञानं विमुच्यते।"
मन ही संसार है, ज्ञान से उससे मुक्ति पाई जा सकती है।
अंतिम विचार
योग वसिष्ठ हमें सिखाता है कि जीवन की जटिलताओं का मूल कारण हमारे विचार, भाव और मन की उलझनें हैं। जब मन शांत होता है, तब ही वास्तविक आत्मज्ञान उत्पन्न होता है — और वही मोक्ष की ओर ले जाता है।
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