गुरु पूर्णिमा: एक आध्यात्मिक उत्सव की महिमा

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥"
गुरु पूर्णिमा हिंदू संस्कृति का एक अत्यंत महत्वपूर्ण आध्यात्मिक पर्व है, जिसे आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह दिन समर्पित होता है गुरु यानी आध्यात्मिक शिक्षक को, जो हमारे अज्ञान को दूर कर ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं। इस दिन शिष्य अपने गुरु के चरणों में श्रद्धा, भक्ति और कृतज्ञता अर्पित करते हैं।
गुरु पूर्णिमा का प्राचीन इतिहास:
गुरु पूर्णिमा का प्रचलन वेदों और उपनिषदों से है। इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं क्योंकि इस दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था, जिन्होंने वेदों का विभाजन कर मानवता को चार वेदों का उपहार दिया। अतः वे आदि गुरु माने जाते हैं। यह दिन बौद्ध परंपरा में भी विशेष महत्व रखता है; भगवान बुद्ध ने बोधगया में अपने पहले शिष्य को इसी दिन उपदेश देना आरंभ किया था।
योग और गुरु पूर्णिमा:
योगिक जीवन में गुरु का स्थान सर्वोच्च होता है। योग केवल शारीरिक अभ्यास नहीं बल्कि एक गहन साधना है, जिसके लिए योग्य गुरु का मार्गदर्शन आवश्यक होता है।
“श्रद्धावान् लभते ज्ञानम्” – भगवद्गीता
श्रद्धावान व्यक्ति ही ज्ञान प्राप्त करता है
गुरु और साधक का संबंध:
एक योग साधक के लिए गुरु केवल शिक्षक नहीं बल्कि पथ-प्रदर्शक, प्रेरक और जीवन के वास्तविक उद्देश्य को दिखाने वाले दीपस्तंभ होते हैं। गुरु पूर्णिमा पर साधक अपने योग गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और अपनी साधना में नवीन ऊर्जा प्राप्त करते हैं।
आज की भागदौड़ भरी, तनावपूर्ण दुनिया में जब व्यक्ति आत्मिक शांति और दिशा से भटक जाता है, तब गुरु ही उसे आंतरिक यात्रा और आत्म-जागृति की ओर प्रेरित करते हैं।
योगिक उद्धरण:
योगः कर्मसु कौशलम्” — गीता
योग का अर्थ है कर्म में कुशलता
निष्कर्ष और प्रेरणा:
गुरु पूर्णिमा केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि यह आत्म-चिंतन, आभार और आत्मिक उन्नति का पर्व है। इस दिन हम अपने गुरुजनों के प्रति आभार प्रकट कर अपने जीवन को उच्चतम उद्देश्य की ओर अग्रसर कर सकते हैं।
गुरु पूर्णिमा की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं
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“गुरु के बिना ज्ञान संभव नहीं, और ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं।”
जय गुरुदेव!